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छत्तीसगढ़ी काव्यात्मक श्रद्धांजलि पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे जी ला समर्पित

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हँसी ला जस सुरता म बसा गे हवस,

शब्द के माला म मोती जड़ाय रहिस।

छत्तीसगढ़ के धरती के गजब के लाल,

हँसत-हँसावत जन-जोन ला जगाय रहिस।

 

मंच म गूंजे रहिस बइठकी के ठहाका,

बोली म रहिस गुदगुदी के रसबाका।

अब त सून होगे हँसी के वह सुर,

मन म बस गे, बन गे अमर सुर।

 

हर छत्तीसगढ़िया के आंखी म अंसू,

हँसी देवइया अब खुद बन गे मौनसू।

कइसे भूली जाए वो मीठ बोली,

जेन हर पीरा म घलो मुस्कान घोली।

 

कहे ल जात हे – देह झन रिथे,

माय माटी म नाम तोर अमर रहिथे।

डॉ. सुरेन्द्र दुबे, तोर छंद, तोर ठिठोली,

अब घलो गूंजत हे, बने हे जीवन के तोली।

 

🖋️ डॉ. रुपेन्द्र कवि के भावना ले एक आत्मिक पंक्ति:

जब घलो अपन नांव “डॉ. रुपेन्द्र कवि” लिखथंव Google म,

दिखथे उहीच – “पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे” जी के छाया सम।

जइसे हर खोज म मोर भेंट हो जाथे ओ मन ले,

हर रोज के मुलाकात बन गे हे अब ऑनलाइन स्नेह सम।

 

छत्तीसगढ़ झुक के देथे सलाम,

हास्यकवि ला, जिन हँसी देके करिस काम तमाम।

तोला नमन हे, सुरता म तोर परछीं,

पद्मश्री दुबे जी, सदाकाल ला अर्पित बिंधी।

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भूपेन्द्र पाण्डेय

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